हिंदू कैलेंडर के अनुसार, रक्षाबंधन का त्योहार हर साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वैसे तो भारत में कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन रक्षाबंधन का एक अलग ही महत्व है। हर साल यह त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई भी बहन को प्रेम रूपी रक्षा सूत्र बांधकर जीवनभर बहन की रक्षा करने का वचन लेते हैं। रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है, जो मनाया तो सिर्फ एक दिन जाता है, लेकिन इससे बनने वाले रिश्ते जीवनभर कायम रहते हैं। हालांकि, इस साल भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन एक नहीं बल्कि दो दिन मनाया जा रहा है.
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कब है राखी बंधने का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार सावन माह की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट पर शुरू हो रही है. इसका समापन 31 अगस्त को सुबह 07.05 बजे होगा. 30 अगस्त को पूर्णिमा तिथि आरंभ होने से यानी सुबह 10:58 बजे से लेकर रात 09:01 बजे तक भद्रा लग रही है.
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ऐसे में 30 अगस्त को भद्रा के कारण दिन में राखी बांधने का कोई शुभ समय नहीं है. इस दिन रात 9 बजे के बाद राखी बांधने का शुभ समय है. इसके अलावा 31 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा सुबह 07:05 बजे तक है और इस समय भद्रा नहीं है. ऐसे में 31 अगस्त को सुबह 7 बजे तक बहनें अपने भाइयों को राखी बांध सकती हैं. ऐसे में इस साल रक्षाबंधन दो दिन 30 और 31 अगस्त को मनाया जा सकता है.
क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्यौहार क्या है पौराणिक कथा
रक्षाबंधन को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक भगवान इंद्र और उनकी पत्नी शची की है। इस कथा का उल्लेख भविष्य पुराण में मिलता है। जब असुरों के राजा बाली ने देवताओं पर आक्रमण किया तो इंद्र की पत्नी शची बहुत परेशान हो गई। इसके बाद वह मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंची। भगवान विष्णु ने शची को एक धागा दिया और कहा कि इसे वह अपने पति की कलाई पर बांध दे जिससे उसे जीत मिलेगी।
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सती ने वैसा ही किया और इस युद्ध में देवताओं का जन्म हुआ। इसके अलावा रक्षाबंधन को लेकर महाभारत काल से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है। जब शिशुपाल से युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण की तर्जनी उंगली कट गई थी तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान कृष्ण के स्नान पर बांध दिया था। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा का वचन दिया था. अपने वादे के अनुसार, यह भगवान कृष्ण ही थे जिन्होंने चीरहरण के दौरान द्रौपदी की रक्षा की थी।
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