गुलाबी सुंडी संक्रमण -सरकार ने केंद्रीय बजट में तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया है तथा इसके लिए 5 साल तक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करने की गारंटी भी दी है, इन सब के बावजूद भी जब गुलाबी सुंडी संक्रमण वाली कपास कई राज्यों में बिकेगी तथा किसानों को बढ़िया बिनौला सीड की लागत नहीं मिल पाएगी, तो सनफ्लावर एवं मूंगफली की तरह कपास व अन्य तिलहनों का भी उत्पादन धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा।
कपास और तिलहन की बिजाई
गौरतलब है कि कपास की बिजाई का समय 20 अप्रैल से 20 म तक का सही समय है यह सरकार द्वारा घोषित किया गया है। पूर्व में मूंगफली व सोयाबीन का जो हाल हुआ है, उससे कई बार किसान कपास की बिजाई के लिए सोचेगा। विगत 2 साल से सोयाबीन के दाम नहीं मिलने से एमपी महाराष्ट्र के किसान मोटे अनाज की तरफ रुख अपनाने लगे हैं,
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‘क्योंकि किसान 6 महीने तक सोयाबीन को कैसे रोक पाएगा, जब समर्थन मूल्य से नीचे बिकेगा। बिनौला सीड में सबसे ज्यादा बिनौला खल 60-62 प्रतिशत निकलता है, इस बार कई राज्यों में गुलाबी सुंडी संक्रमण कपास में हो गया था, जिसे किसानों या नरमा जिनिंग मिलों को औने-पौने भाव में बेच दिया गया। कपास को प्रोसेसिंग करने पर रूई अलग एवं बिनोला सीड अलग निकलता है। वह बिनौला सीड गुलाबी सुंडी वाला 2250/2500 रुपए प्रति कुंटल में मंडियों में बिक गया, इसमें तेल की मात्रा 5-6 प्रतिशत की है,
किसान बिनोला रोकने में असमर्थ
यह बिनौला तेल अखाद्य की श्रेणी में आता है, इस पर जीएसटी पांच प्रतिशत के स्थान पर 18 प्रतिशत लगाना चाहिए। ‘क्योंकि किसान 6 महीने तक सोयाबीन को कैसे रोक पाएगा, जब समर्थन मूल्य से नीचे बिकेगा। बिनौला सीड में सबसे ज्यादा बिनौला खल 60-62 प्रतिशत निकलता है, इस बार कई राज्यों में गुलाबी सुंडी संक्रमण कपास में हो गया था, जिसे किसानों या नरमा जिनिंग मिलों को औने-पौने भाव में बेच दिया गया। कपास को प्रोसेसिंग करने पर रूई अलग एवं बिनोला सीड अलग निकलता है। वह बिनौला सीड गुलाबी सुंडी वाला 2250/2500 रुपए प्रति कुंटल में मंडियों में बिक गया, इसमें तेल की मात्रा 5-6 प्रतिशत की है, यह बिनौला तेल अखाद्य की श्रेणी में आता है, इस पर जीएसटी पांच प्रतिशत के स्थान पर 18 प्रतिशत लगाना चाहिए।
गुलाबी सुंडी संक्रमण पशुओ के लिए हानिकारक
गुलाबी सुंडी बिनौला खल दुधारू पशुओं के लिए हानिकारक होता है। बिनौले खल पर पशु आहार के लिए जीएसटी मुफ्त होता है, लेकिन सुंडी वाली पशुओं को नुकसानदायक है। सरकार व जीएसटी वालों को सारे आंकड़े कपास जिनिंग मिल वालों से मिल सकती है, इसलिए पशु आहार के लिए महाराष्ट्र के बिनोला सीड के भाव 3100/3300 प्रति क्विंटल जबकि गुलाबी सुंदरी वाला बिनोला सीट 2250/2450 रुपए जिनिंग मीलों से खरीदते हैं तथा हजारों करोड़ों रुपए की जीएसटी की चोरी बिनौला खल के नाम पर करते हैं। यह गुलाबी सुंडी वाले सीड से बनी हुई खल 50 प्रतिशत तक बाजारों में खुलेआम बिकती है, जबकि बढ़िया बिनौला खल के भाव 3100/3500 रुपए चल रहे हैं। इसमें 8-8.5 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है, जो दुधारू पशुओं के लिए लाभदायक होती है।
नकली बिनौला खल अराजक तत्व गुजरात महाराष्ट्र में बना रहे हैं
वायदा कारोबार में कम से कम 6 प्रतिशत तेल वाली खल पास होती है, दोनों खल शुद्ध सीड से बनती है। इसके अलावा विदेशी तेल के दलाल टाइप के कारोबारियों ने सस्ता तेल आयात करके तेल उद्योग को तबाह कर दिया है, अब यह कपास उद्योग की बर्बादी पर लगे हुए हैं। जब कपास की आवक आने से पहले वायदा का भाव 3050 कर दिया। बिनोला खल वायदा किसानों का दिसंबर-जनवरी में 2500 रुपए क्विंटल कर दिया तो अब बिजाई के समय भी 2550 रुपए क्विंटल है, इस स्थिति में बिनौला की बिजाई घट जाएगी। गुजरात के पशुपालन मंत्री द्वारा निर्देश दिए जाने के बावजूद भी नकली बिनौला खल अराजक तत्व गुजरात महाराष्ट्र में बना रहे हैं, साथ में गुलाबी सुंडी खल बना रहे हैं, इसको प्रशासन सहित कोई देखने वाला नहीं है। यही कारण है कि 75 प्रतिशत बिनौला उद्योग बंद हो गए हैं।
सरकार कपास और तिलहन का उत्पादन कैसे बड़ा पाएगी
जब असली कपास्या खल की बजाय नकली खल वायदा कारोबार वाले किसानों की लागत से 30 प्रतिशत कम दाम पर सप्लाई कर देंगे, तो किसानों को कपास उत्पादन करने की क्या जरूरत होगी। इसमें एक बहुत बड़ी साजिश दिखाई दे रही है, इससे सनफ्लावर की तरह कपास उत्पादन भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। दूसरी ओर खल की भरती केमिकल वाली पुरानी बोरियों में करना भी एक अपराध है, इस पर भी कार्यवाही होनी चाहिए।