भारत के चावल की कीमत तीन महीनों के निचले स्तर पर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भाव में मंदी

बैंकॉक। एक सप्ताह पूर्व की तुलना में बीते सप्ताह एशियाई कारोबार में भारत के चावल की निर्यात कीमत मंदी होती हुई तीन महीनों से भी कुछ अधिक समय के निचले स्तर पर आ गई। कारोबारियों और विश्लेषकों ने बताया कि मांग कमजोर बनी होने तथा आपूर्ति प्रचुर होने के कारण यह नवीनतम मंदी आई है। दूसरी ओर, थाईलैंड के चावल की कीमत में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं हुआ।

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आलोच्य सप्ताह के दौरान शीर्ष निर्यातक, भारत, के 5 प्रतिशत टुकड़ा पारबॉयल्ड चावल की कीमत 528-536 डॉलर प्रति टन बोली गई। एक सप्ताह पूर्व इसकी कीमत 538-546 डॉलर थी। पिछले महीने इसकी कीमत तेज होती हुई 560 डॉलर प्रति टन के रिकॉर्ड ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी। गौरतलब है कि घरेलू बाजारों में चावल की कीमत को नियंत्रण में बनाए रखने के लिए अगस्त, 2023 में नई दिल्ली ने पारबॉयल्ड चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत निर्यात ड्यूटी लागू कर दी थी।

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बहरहाल, समीक्षागत सप्ताह के दौरान वियतनाम के 5 प्रतिशत टुकड़ा चावल की कीमत 575-580 डॉलर प्रति टन पर बोली गई। एक सप्ताह पूर्व भी इसकी कीमत इसी स्तर पर थी। हो छि मिन्ह सिटी स्थित कारोबारियों के अनुसार बीते सप्ताहांत से शुरू होकर पांच दिनों का लंबा अवकाश होने से पूर्व कामकाजी गतिविायां सुस्त पड़ गई हैं। उन्होंने आगे बताया कि घरेलू चावल प्रोसैसर्स द्वारा सुस्त गति से खरीद किए जाने के कारण धान की घरेलू कीमतों में मंदी का दबाव बना हुआ है। गौरतलब है कि राष्टां रीय अवकाश के कारण वियतनाम के बाजार चालू सप्ताह के आरंभिक कामकाजी दिन से लेकर तीसरे कामकाजी दिन तक बंद रहेंगे।

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थाईलैंड का 5 प्रतिशत टुकड़ा चावल 580-585 डॉलर प्रति टन पर बना रहा। एक सप्ताह पूर्व इसकी कीमत 585 डॉलन पर बोली जा रही थी। यहां स्थित एक कारोबारी ने कहा कि इंडोनेशिया की मांग बनी होने तथा बाहट में कमजोरी आने के कारण कीमत मजबूत बनी हुई है। उधर, कृषि मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि ऊंची कीमतों का फायदा उठाने के लिए किसानों द्वारा रोपाई के रकबे में वृद्धि जाने के कारण इस बार बंगलादेश में धान की ग्रीष्मकालीन फसल का उत्पादन बढ़ता हुआ 205 लाख टन होने की उम्मीद है। एक वर्ष इसका 200 लाख टन उत्पादन हुआ था। इस फसल को ‘बोरोÓ के नाम से भी जाना जाता है और आमतौर पर बंगलादेश में होने वाले कुल करीब 3.70 करोड़ टन उत्पादन में इस फसल की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से भी अधिक की होती है।