चने की फसल में फफूंद एवं जड़ रोग (उकठा रोग) के कारण काफी परेशानी होती है। इस मौसम में चने की फसल में कई तरह के कीट और रोग लगने लगते हैं, जो फसल को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. जनवरी और फरवरी माह में जैसे ही तापमान कम होने लगता है चने की फसल में ये कीट एवं रोग लगने लगते हैं। इसके साथ ही फंगस जैसी बीमारियाँ अपना रूप दिखाने लगती हैं।
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अगर इन बीमारियों का इलाज सही समय पर न किया जाए तो ये पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं, जिससे फसल का उत्पादन काफी कम हो जाता है और किसानों की पूरी मेहनत भी बर्बाद हो जाती है। आज के इस लेख में हम चने की फसल पर लगने वाले फफूंद जनित रोग एवं उखटा रोग के कारण, बचाव के तरीके एवं चने की फसल में लगने वाले अन्य रोगों के बारे में पूरी जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
चने की फसल में फफूंद जनित रोग एवं जड़ रोग की समस्या
मौसमी बदलाव के कारण कई स्थानों पर चने की फसल में फफूंद जनित रोग, कीट रोग और जड़ रोग का प्रकोप बढ़ने की खबरें आ रही हैं। यह समस्या राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में देखी जा रही है, इसलिए किसान कुछ आसान उपाय कर सकते हैं. इस प्रकार हम इन बीमारियों पर नियंत्रण पा सकते हैं, जिससे हमें किसी भी प्रकार की आर्थिक हानि नहीं उठानी पड़ेगी और चने की खेती से अच्छा लाभ प्राप्त कर सकेंगे, तो आइए जानते हैं आज की विस्तृत जानकारी…
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ये चने की फसल के प्रमुख कीट एवं रोग हैं।
चने की फसल में उखड़ा रोग (उखठा) बड़ी समस्या पैदा कर रहा है, इसके अलावा फफूंद जनित रोग जैसे मूनलाइट, ग्रे फंगस, हरदा और स्टेमफिलियम ब्लाइट प्रमुख रोग हैं। इसके अलावा अन्य रोग फली छेदक हैं. कटवर्म एवं ब्लाइट रोग से भी चने की फसल को नुकसान हो सकता है। अगर किसान समय रहते इन कीटों पर नियंत्रण कर लें तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
चने की फसल में उखेड़ा रोग के कारण एवं लक्षण।
मौसम में बदलाव के कारण चने में कई तरह के रोग लगने लगते हैं, जिनमें प्रमुख है उखेड़ा रोग जो फसल को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। इस रोग का उचित प्रबंधन करके किसान अपनी फसलों को बर्बाद होने से बचा सकते हैं। कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर के विशेषज्ञ डॉ. का कहना है कि इस रोग का प्रभाव खेत में छोटे-छोटे टुकड़ों में दिखाई देता है, शुरुआत में पौधे की ऊपरी पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं, जिसके बाद धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। जड़ें. तने को काटने पर वाहक ऊतकों में कवक जाल एक धागे जैसी काली संरचना के रूप में दिखाई देने लगता है।
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उखेड़ा रोग से बचाव के उपाय
उखेड़ा रोग के नियंत्रण के लिए किसान साथी बीजों को ट्राइकोडर्मा पाउडर से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें तथा इसके साथ ही चार किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिला दें। इस रोग के लगने पर बुआई से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से. जब इस रोग के लक्षण खड़ी फसल में दिखाई देने लगे तो पौधों के जड़ क्षेत्र में कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।
चने की फसल में फफूंद जनित रोग चांदनी के लक्षण एवं रोकथाम
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चने की फसल में यह रोग एस्कोकाइटा रबी नामक कवक के कारण फैलता है। यह रोग सर्दियों में अधिक नमी और कम तापमान के कारण फैलता है और फसल को नुकसान पहुंचाता है। इस रोग के कारण चने के पौधे के निचले भाग पर गेरूआ रंग के भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं, जो धीरे-धीरे पूरे पौधे को सुखा देते हैं। इस रोग से प्रभावित चने के पौधे की पत्तियों, फूलों और फलियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जब यह रोग फैलने लगे तो धब्बे पड़ने लगें तो कैप्टान या मैंकोजेब या क्लोरोवालोनिल 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसल पर 2 से 3 बार छिड़काव करने से रोग से छुटकारा मिल जाता है।
ग्रे फंगस रोग के लक्षण एवं बचाव
चने में ग्रे मोल्ड रोग का मुख्य कारण वोट्राइटिस सायनेरिया नामक कवक होता है। यह रोग तब अधिक फैलता है जब फूल आने शुरू हो गए हों या पूरी तरह पकने के कगार पर हों। इसके मुख्य लक्षण तब दिखाई देते हैं जब आसमान में नमी अधिक होती है जिसके कारण पौधे पर काले और भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
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जिन शाखाओं एवं तनों पर कवक का संक्रमण होता है वहां पर काले एवं भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं, संक्रमित पौधों में फूल गिरने लगते हैं तथा फलियां पूर्ण रूप से नहीं पक पाती हैं एवं दाने सिकुड़ जाते हैं। बोट्रीटीस ग्रेमोल्ड के लक्षण दिखने पर किसानों को इनमें से किसी एक दवा जैसे कैप्टान/कैबेंडाजिम/मैन्कोजेब/क्लोरोथालोनिल का प्रयोग एक सप्ताह के अंतराल पर 3 बार करना चाहिए, ताकि रोग के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सके।
चने की फसल में झुलसा रोग के लक्षण एवं रोकथाम के उपाय।
इस रोग का मुख्य लक्षण यह है कि पौधे की निचली पत्तियां पीली पड़कर गिरने लगती हैं, इस रोग के शुरुआती दिनों में बैंगनी रंग और भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं, इस रोग (झुलसा रोग) के कारण पौधे के फूल झड़ने लगते हैं जिसके कारण फलियां नहीं बन पाती हैं. इस रोग से बचाव के लिए किसान भाई मैन्कोजेब (75% WP) 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर चने की फसल में छिड़काव करें, इससे रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।