प्रयागराज में मौसम का फसलों के उत्पादन पर असर पड़ता है। यहां गर्मियों में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक और सर्दियों में तीन डिग्री से नीचे चला जाता है। इससे उत्पादन और समय प्रबंधन पर मौसम का असर पड़ता है। फसल में एक पखवाड़ा देरी होने पर कीटों का हमला फसलों पर होता है और उत्पादन प्रभावित होता है। मौसम से लड़कर गेहूं और धान की नई किस्में दोगुना उत्पादन देंगी। यह चमत्कार शुआट्स के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया है। शुआट्स के कृषि वैज्ञानिकों ने दो किस्में विकसित करने में सफलता हासिल की है। इन फसलों के उत्पादन में एक पखवाड़ा से 20 दिन तक की बचत होगी। प्रयागराज में मौसम का फसलों के उत्पादन पर असर पड़ता है।
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यहां गर्मियों में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक और सर्दियों में तीन डिग्री से नीचे चला जाता है। इससे उत्पादन और समय प्रबंधन पर मौसम का असर पड़ता है। फसल में एक पखवाड़ा देरी होने पर कीटों का हमला फसलों पर होता है और उत्पादन प्रभावित होता है। इसे देखते हुए शुआट्स में धान और गेहूं की नई किस्मों पर शोध चल रहा था। शोध निदेशक प्रो. एसडी मैकार्थी की देखरेख में कृषि वैज्ञानिक डॉ. महाबल राम व डॉ. रूपा लावनिया और डॉ. वीपी शाही ने गेहूं की नई किस्में एएआई डब्लू-52 और सुआत्से धान-7 (सुहानी) विकसित की हैं।
नई किस्मों की विशेषताएं
गेहूं प्रजनक वैज्ञानिक डॉ. वीपी शाही और धान प्रजनक डॉ. रूपा लावनिया ने बताया कि एएआई डब्लू-52 किस्म कम सिंचाई के साथ देर से बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसके पौधे की ऊंचाई 95-98 सेमी होती है और यह 110-115 दिनों में पक जाती है। जबकि परंपरागत किस्में 115 से 130 दिनों में तैयार हो जाती हैं। इसकी औसत उपज 43.94 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जबकि सामान्य गेहूं की उत्पादन क्षमता 23 से 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच होती है।
इसी तरह सुआत्से धान-7 (सुहानी) किस्म सिंचित क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इसके पौधे की ऊंचाई 85-95 सेमी होती है। यह किस्म 125-130 दिनों में पक जाती है। जबकि अन्य परंपरागत किस्मों को पकने में करीब एक पखवाड़ा अधिक समय लगता है। इसकी औसत उपज 44.40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जबकि परंपरागत फसलों से 22 क्विंटल तक ही उपज होती है।
प्रयागराज में पिछले साल धान और गेहूं का उत्पादन
प्रयागराज जिले में पिछले साल 2.11 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती की गई थी। इसमें 4.50 लाख क्विंटल उत्पादन हुआ था। जबकि धान की खेती 1.71 हेक्टेयर में की गई थी। इसमें 3.70 लाख क्विंटल उत्पादन हुआ था।
शुआट्स में तैयार दोनों नई किस्मों को प्रयागराज के मौसम को देखते हुए तैयार किया गया है। प्रतिकूल मौसम में भी फसलें दोगुना उत्पादन देंगी। साथ ही इनके उत्पादन में कम समय लगेगा। – प्रो. एसडी मैकार्थी, निदेशक शोध, शुआट्स